त्रिवेणी संग्रहालय के उपरी मंजिल पर तीन खंड है । उसका उत्तरी खंड जहां मुक्तिबोध जी रहा करते थे , उनकी साहित्य साधना का स्थान और घुमावदार सीढ़ी जिसका उल्लेख उन्होंने अपनी रचनाओं में की है इसी उत्तरी खंड में है । इस खंड में पुनश्च मुक्तिबोध जी को उनकी यादों के साथ समर्पित करना निश्चय ही उनके प्रति कृतज्ञता एवं श्रद्धा का प्रतीक है । इस स्मारक के मध्य खंड को साहित्यकार डा. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी तथा दक्षिणी खंड को मानस मर्मज्ञ डा. बल्देव प्रसाद मिश्र की स्मृतियों उनके पत्रों, रचनाओं एवं पांडुलिपियों के प्रदर्शन हेतु समर्पित कर इस स्मारक को तीन मूर्धन्य साहित्यकारों का संगम “त्रिवेणी” बना दिया गया है । इस स्मारक के भूतल में स्वागत कक्ष, प्रतीक्षा कक्ष एवं वाचनालय की व्यवस्था की गई है।
मुक्तिबोध जी को समर्पित कक्ष को देखकर ऐसा प्रतीत होता है, जैसे वह आज भी अपनी रचनाओं के सृजन में लीन हो । मुक्तिबोध जी का सिगरेट बॉक्स, उनकी पोशाक, चश्मा और उनकी वह दो कलमें (पेन) जिससे उन्होंने अपनी अनेक रचनाएँ लिखी थी, को वहां देखकर या आभास होता है जैसे वह कहीं हमारे आसपास मौजूद हो । स्मारक के मध्यकक्ष में डा. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी जी के अनेक दुर्लभ छायाचित्र, पांडुलिपियों , उनके ग्रंथो आदि को सजाकर रखा जाता है । उनकी ओईल पेंटिंग का अवलोकन सहज ही उनकी स्मृति को जीवंत बनाता है । स्मारक के दक्षिण कक्ष में डा. बल्देव प्रसाद मिश्र जी का तेल चित्र के साथ, उनके जीवन से जुडी अनेक यादों को संजोया गया है ।
कुल मिलाकर राजनांदगांव में स्थापित मुक्तिबोध स्मारक-त्रिवेणी संग्रहालय अपने आप में अनूठा है । छत्तीसगढ़ राज्य ही नहीं अपितु राष्ट्रीय स्तर पर साहित्यकारों की स्मृति को समर्पित या एक ऐसा स्मारक है जिसका कहीं अन्यत्र उदाहरण नहीं मिलता । साहित्य प्रेमियों एवं शोधकर्ताओं के लिए यह एक अमूल्य धरोहर है ।
यह स्मारक सुबह 10 बजे से शाम 5 बजे तक दर्शकों, साहित्य प्रेमियों के लिए खुला रहता है । शासकीय अवकाश रविवार के दिन भी यहां जाया जा सकता है । जिला प्रशासन ने यह व्यवस्था रविवार के अवकाश का लाभ उठाकर ज्यादा से ज्यादा लोग इस एतिहासिक ईमारत एवं साहित्य मनीषियों की रचनाओं तथा उनसे जुडी सामग्रियों का अवलोकन कर सकें, इस उद्देश्य से की है । यह स्मारक सोमवार को बंद रहता है ।