जिले में पले बढे राष्ट्रीय स्तर के ख्याति प्राप्त साहित्यकार स्व. सर्व श्री गजानन माधव मुक्तिबोध, श्री पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी एवं श्री बल्देव प्रसाद मिश्र के होने के पश्चात भी साहित्य के क्षेत्र में अभी तक यह क्षेत्र पूर्णतः उपेक्षित था । दिग्विजय महाविद्यालय के समीप स्थित प्रसिद्ध भूलन बाग को त्रिवेणी परिसर के रूप में विकसित किया गया, जिसकी वर्तमान में सौदर्य देखते ही बनती है । इतना रमणीक स्थान प्रदेश में तो क्या राज्य के गिनती के शहरों में होंगे, जहां दो-दो तालाब से घिरा हुआ भू-खंड पृष्ठ भाग ऐतिहासिक पृष्ठभूमि को दर्शाने वाला मुक्ति बोध परिसर स्थापित किया गया है ।
भवन का जीर्णोद्धार के पश्चात का भव्य दृश्य, जिसे मुक्तिबोध स्मारक परिसर के रूप में शासन द्वारा विकसित किया गया ।
मुक्ति बोध स्मारक का निर्माण कर छत्तीसगढ़ की साहित्यिक धरोहर, विशेष कर मुक्तिबोध , डा. पदुमलाल पुन्नालाल बख्शी तथा डा. बल्देव प्रसाद मिश्र के व्यक्तित्व एवं कृतित्व के महत्त्व को रेखांकित करने की पहल अब साकार हो रही है ।
मूर्धन्य कवि – समीक्षक गजानन माधव मुक्तिबोध जी ने अपने जीवन काल की सर्वश्रेष्ठ रचनाएँ दिग्विजय कॉलेज में अपने सेवा काल (1958-1964) के दौरान लिखी उनके इस रचनाकाल और रचनाओं पर देश की शीर्ष अकादमिक व साहित्यिक बिरादरी में निरंतर चर्चा होती रही है । इसी प्रकार स्व. बख्शी जी इस महाविद्यालय में प्राध्यापक रहे और अपनी लेखनी से माँ भारती की अनन्य सेवा की , डा. मिश्र जी तुलसी दर्शन के प्रखर सर्जक के रूप में मानस अध्येताओं के आदर्श बन गए । जन्म और कर्म से राजनांदगांव व छत्तीसगढ़ को गौरवान्वित करने वाले इन साहित्य मनीषियों की ज्ञान राशि के संचित कोष से नयी पीढ़ी को परिचित करने की दृष्टि से स्मारक को लोग बड़ी आशा से निहार रहे है ।