बख्शी जी का जन्म 27 मई 1894 को खैरागढ़ में हुआ था । उनके पिता श्री पुन्नालाल बख्शी एवं माता श्रीमती मनोरमा देवी थीं । जुलाई 1911 में प्रथम अनुवादित कहानी भाग्य प्रकाशित हुई । 1912 में मेट्रिक उत्तीर्ण करने के उपरांत बनारस के सेन्ट्रल हिन्दू कॉलेज में प्रवेश लिया । लक्ष्मी देवी के साथ उनका विवाह हुआ था । 1915 में सोना निकालने वाली चीटियाँ नामक प्रथम निबंध सरस्वती पत्रिका में प्रकाशित हुआ । 1961 में बी. ए. की उपाधि प्राप्त की । इसी वर्ष उनकी झलमला नामक कहानी सरस्वती में प्रकाशित हुई । 1960 में सागर विश्वविद्यालय के तत्कालीन कुलपति पं. द्वारका प्रसाद मिश्र उन्हें डी. लिट् की मानद उपाधि प्रदान की गई ।
अध्ययन, अध्यापन, लेखन, संपादन व सर्वोपरि शिक्षकीय कार्य पर गर्व करने वाले साहित्य साधक बख्शी जी की अभिलाषा यही रही कि अगले जन्म में भी मास्टर बनूं । बख्शी जी ने राजनांदगांव के स्टेट स्कूल, कांकेर हाई स्कूल, खैरागढ़ के हाई स्कूल में शिक्षक के रूप में अपनी सारस्वत सेवाएं दी । दिग्विजय महाविद्यालय में हिंदी के प्राध्यापक रहे । इस बीच उनका सृजन कर्म निरंतर प्रशस्त्र होता रहा । साहित्य चर्चा, कुछ, और कुछ, यात्री, मेरे प्रिय निबंध, मेरा देश, तुम्हारे लिए आदि निबंध संग्रह, विश्व साहित्य, हिंदी साहित्य विमर्श आदि समीक्षात्मक कृतियाँ, झलमला , त्रिवेणी आदि कहानी संग्रह के अतिरिक्त उपन्यास, डायरी, आत्मकथा, संस्मरण, नाटक, बाल साहित्य व काव्य कृतियों के माध्यम से भी बख्शी जी ने सरस्वती के संपादक के रूप में अनुकरणीय व अविस्मरणीय सेवाएं प्रदान की ।
बख्शी जी मध्यप्रदेश हिंदी साहित्य सम्मेलन में सभापति (1950) रहे, 1951 में डॉ. हजारी प्रसाद द्विवेदी की अध्यक्षता में जबलपुर में आपका सार्वजनिक अभिनन्दन, 1964 में 70वें जन्मदिन पर छात्रों द्वारा अभिनंदन किया गया । 1968 में उन्हें मध्यप्रदेश शासन द्वारा विशेष सम्मान प्रदान किया गया, सहज, सरल व आत्मीय व्यक्तित्व के प्रतिमान संत साहित्यकार बख्शी जी ने 28 दिसम्बर 1971 को पूर्वान्ह 11:25 बजे रायपुर के डी. के. हॉस्पिटल में अंतिम सांसे लीं ।